हाथरस या हाथ का सत्ता के लिए तरस!
बलात्कार की घटना की रिपोर्टिंग बहुत संवेदनशील तरीके से की जानी चाहिए। ऐसी घटना में किसी एजेंडा का होना एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। चाहे वो एजेंडा ऊँची जात और नीची जात का हो, या फिर किसी पोलिटिकल पार्टी के वोट बैंक का हो, किसी को भी अपनी मर्यादा लांघने का अधिकार नहीं होना चाहिए।

कुछ वर्षों पहले एक सिनेमा ने देश के मिडिया के चरित्र का बखूबी वर्णन किया था। सिनेमा का नाम था ‘पीपली लाइव’। आज वही पीपली लाइव हाथरस बना हुआ है। और वैसे हीं मीडिया रूपी गिद्धों ने एक परिवार को घेर रखा है। और इन सब के ऊपर राजनितिक पार्टियां अपनी अपनी रोटियां सेकने में लगी हुई हैं। आखिर हाथरस की सच्चाई क्या है? क्या वाकई उत्तर प्रदेश सरकार ने दलितों का उत्पीड़न किया है? या फिर एक आपसी रंजिस के मामले को महज़ राजनितिक फायदे के लिए गैंगरेप का केस बना दिया गया है?
पूरे मामले को समझने के लिए हमे उन लोगों को सुनना होगा जो वहीँ हाथरस के हैं और इस केस को शुरू से फॉलो कर रहे हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं दीपक शर्मा। हाथरस में रहने वाले दीपक ने अपने ट्विटर पे एक वीडियो पोस्ट किया जिसमे वो इस घटना को शुरुआत से समझा रहे हैं। और साथ ही साथ कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी पूछ रहे हैं।
मैं हाथरस से हूँ
बिका हुआ पत्रकार नहीं हूँ
एक आम इंसान हूँ किसी पार्टी का गुलाम नहीं हूँ#हाथरस_का_सच pic.twitter.com/zWtvR5jwVL— Deepak Sharma (@TheDeepak2020In) October 2, 2020
अगर दीपक की माने तो इस पूरे मामले में रेप तो हुआ हीं नहीं है। और इस पूरे खेल को सिर्फ राजनितिक फायदे के लिए रचा गया है। दीपक एक बहुत बड़ा सवाल मीडिया के आचरण पर भी उठा रहे हैं। फिर से, अगर दीपक की माने तो इस तिल को तार बनाने में मिडिया का सबसे बड़ा योगदान है।
पहली नज़र में तो दीपक की कही सारी बातें बनावटी और अजेंडे के तहत लगती है। लेकिन फिर जब हम माधवन नारायणन जी के एक ट्वीट को देखते हैं तो सारा का सारा खेल अपनेआप साफ़ दिखाई देने लगता है। माधवन नारायणन एक जाने माने और बड़े हीं प्रतिष्ठित पत्रकार और कलुमनिस्ट हैं।
माधवन हाथरस में हुए इस घटना को एक राजनितिक मौके की तरह देखते हैं और कहते हैं कि इससे अच्छा मौका कांग्रेस पार्टी को मिल ही नहीं सकता है। अपने उसी ट्वीट में माधवन प्रियंका गाँधी के इस तत्परता को भी समझाते हैं और कहते हैं कि इसी तरह अगर प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश में अपने राजनितिक वज़ूद को जीवंत करती रहीं तो राज्य में अगला चुनाव बहुत हीं रोचक होने वाला है।
Deleted my tweet to avoid unwarranted attention that impinges on my time. Twitter I learn is a place for hypocrites to troll.
— Madhavan Narayanan (@madversity) October 1, 2020
हलाकि माधवन ने बाद में अपने इस ट्वीट को डिलीट भी कर दिया। और क्यों न करे। राजनितिक पार्टिया अपने दाव को इस तरह जगजाहिर थोड़े हीं न होने देंगी।
अब बात आती है मिडिया के गिद्ध बनने की। पिछले दो दिनों में जिस तरह कुछ तथाकथिक पत्रकार रूपी दलालों के फ़ोन कॉल रिकॉर्डिंग्स सामने आयीं हैं, उससे तो ये बात पूरी तरह से साफ़ है कि पीड़िता के परिवार वालों को बहलाने फुसलाने से लेकर भड़काने तक का काम मीडिया ने बखूबी किया है। मीडिया चाहे सरकार पे कितने ही आरोप क्यों न लगा ले कि सरकार फ़ोन टेप कैसे कर सकती है, वो इस बात से इंकार बिलकुल भी नहीं कर सकती कि उन्होंने परिवार वालों को अजेंडे के तहत नहीं फसाया। और फिर जो मीडिया स्टिंग ऑपरेशन को सही मानती हो, वो सरकार पर फ़ोन टैपिंग के आरोप कैसे लगा सकती है!
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बलात्कार से क्रूर और घिनौना अपराध कोई हो हीं नहीं सकता। बलात्कार सिर्फ एक महिला के शरीर पर आघात नहीं है, बल्कि उसके मन और पूरे वज़ूद पर एक ऐसा घाव है जो ताउम्र उस महिला को जीना पड़ता है। इसलिए बलात्कार की घटना की रिपोर्टिंग बहुत संवेदनशील तरीके से की जानी चाहिए। ऐसी घटना में किसी एजेंडा का होना एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। चाहे वो एजेंडा ऊँची जात और नीची जात का हो, या फिर किसी पोलिटिकल पार्टी के वोट बैंक का हो, किसी को भी अपनी मर्यादा लांघने का अधिकार नहीं होना चाहिए। क्यूंकि, जब तक ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग पोलिटिकल अजेंडे के तहत होती रहेगी, तब का किसी न किसी महिला के गरिमा से खिलवाड़ होता रहेगा।