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क्यों ज़रूरी है सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या की सीबीआई जांच

बॉलीवुड की दिखावटी चकाचौंध की दुनिया एक छलावे की तरह है। एक ऐसी मनमोहक दुनिया जिसको हर कोई जीना चाहता है। लेकिन हर कोई जी नहीं पाता है। सुशांत सिंह राजपूत एक ऐसा ही नाम है। एक उभरता हुआ सितारा जिसने बॉलीवुड की सफलताओं को तो पा लिया, लेकिन उसे जी न सका।

सुशांत सिंह राजपूत की असमय मौत ने फ़िल्मी दुनिया के ऐसे चेहरे को बेनकाब कर दिया है जो कि आज से पहले एक आकर्षक मुखौटे के पीछे छिपा हुआ था। और इस चेहरे की हक़ीक़त बेहद भयावह है। क्यूंकि इस चेहरे की आड़ में कुछ गिने चुने लोग पूरी फ़िल्मी दुनिया को अपने इशारे पे नाचने के लिए मजबूर करते हैं।

बॉलीवुड हमेशा से ही काले पैसे को सफ़ेद करने का अड्डा रहा है। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बड़े बड़े प्रोडूसर्स को फंडिंग कहाँ से मिलती है, कि दुबई और मॉरीसस से किसके हवाले का पैसा बॉलीवुड में आता है। और तय बात है कि जिसका पैसा होगा, उसकी ही चलती होगी। बढ़ते बढ़ते आज हालत ऐसी है कि कहानी से लेकर कलाकार तक, और प्रमोशन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक, हर एक चीज़ कंट्रोल्ड होती है। हर एक बात फिक्स्ड है। बॉलीवुड के आका जिसको चाहेंगे उसको ही काम मिलेगा। और इन आकाओ ने अपनी बात मनवाने के लिए कुछ लोगों को रखा हुआ है।

आज जिन नामों की चर्चा हो रही है, ये वही गिने चुने लोग हैं जो अपने आकाओं के इशारे पे काम करते हैं। चाहे वो महेश भट्ट हों, या करण जोहर, सब किसी न किसी आका का हुक्म बजा रहे हैं। जो कलाकार इनके हाँ में हाँ मिलाता है, उसको काम मिलता रहता है। जो नहीं मिलाता, उसको काम भी मिलना बंद हो जाता है।

लेकिन समस्या सिर्फ इतनी सी नहीं है। आज ये बॉलीवुड माफिया सिर्फ टैलेंटेड कलाकारों के लिए परेशानी का कारण नहीं हैं, बल्कि पूरे देश के लिए एक खतरा बनते जा रहे हैं। सिनेमा समाज पर हमेशा से ही अपनी असर छोड़ता आया है। सामाजिक विचारों पर सिनेमा का अपना प्रभाव रहा है। सिनेमा लोगों के सोच को हमेशा से प्रभावित करती आयीं हैं। और यही सबसे बड़े खतरे की घंटी है।

आज सिनेमा के ज़रिये देश में एक एंटी-इस्टैब्लिशमेंट मुहीम चलायी जा रही है। देश की जनता को बार बार एक ही बात अलग अलग तरह से दिखाई जा रही है। और फिर भोली जनता उस बात को सच मान लेती है। आज किसी भी वेब सीरीज को उठा के देख लिया जाये, उसमे समाज के एक विशेष वर्ग को प्रताड़ित दर्शाया जा रहा होगा। वहीँ दूसरी तरफ सारे गलत काम समाज का बड़ा तबका कर रहा होगा। उदहारण के लिए सेक्रेड गेम्स नामक वेब सीरीज को देख लिया जाये। इसमें सारे गलत काम गायतोंडे और त्रिपाठी कर रहे होते हैं। यहाँ तक कि देश पे आतंकी हमला भी यही लोग करवा रहे होते हैं। वैसे हीं मिर्ज़ापुर नामक वेब सीरीज में पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया राज को दिखाया गया है। यहाँ भी सारे गलत काम त्रिपाठी ही कर रहे हैं।

जबकि हक़ीक़त इसके ठीक उलट है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख़्तार अंसारी नाम के माफिया का राज चलता है। और देश में जितने भी आतंकी हमले हुए हैं, किसने करवाए हैं ये भी सब जानते हैं। फिर भी, जान बूझ के एक नैरेटिव सेट किया जा रहा है। और जनता भ्रमित हो रही है। जनवरी 2020 के महीने में हुए दिल्ली दंगे इसका जीता जागता उदाहरण है। सीएए और एनआरसी के विरोध में भी इस नैरेटिव का पूरा प्रभाव दीखता है।

जिस तरह से एनआईए को सीएए प्रोटेस्ट में पीएफआई का हाथ मिला था, और एक पूरी की पूरी फंडिंग ट्रेल मिली थी जिसके तार दुबई और पाकिस्तान से जुड़े थे, उसी तरह से बॉलीवुड के फंडिंग ट्रेल को भी खंगालने की जरूरत hai.

और इसलिए, सीबीआई को इस फ़िल्मी जगत के माफिया राज की जांच जरूर करनी चाहिए। इस बात की जांच जरूर होनी चाहिए कि बॉलीवुड को कौन चला रहा है। पैसा किसका है और वो क्या चाहता है। क्यों बार बार एक ही नैरेटिव को बताया जा रहा है। जैसे ही इस बात का खुलासा होगा, वैसे ही फ़िल्मी जगत के इस माफिया राज का भी अंत हो जायेगा।

ये बात जरूर है कि सुशांत सिंह राजपूत ने अपने छोटे से फ़िल्मी करियर में सफलता की उचाईयों को छुआ। लेकिन उससे भी बड़ी बात ये है कि उसकी मौत ने देश के एंटरटेनमेंट जगत के घिनौने सच को सबके सामने ला दिया है। जरूरत अब इस बात की है कि बिहार के इस होनहार जो इन्साफ मिले। जरूरत इस बात की है कि ये सुनिश्चित हो सके कि अब दोबारा कोई सुशांत की तरह अपने जीवन को ख़त्म न करे।

और इसलिए, जरूरत इस बात की है कि सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या की जांच सीबीआई को सौपी जाये।

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