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क्या चिराग ले पाएंगे रामविलास पासवान की जगह!

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग हो कर अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला लेकर चिराग पासवान ने ये तो साबित कर दिया है कि उनमे बड़े फैसले लेने की काबिलियत है।

रामविलास पासवान के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत और खासकर बिहार की राजनीति में एक बहुत बड़ा शून्य पैदा हो गया है जिसका भर पाना शायद ही कभी संभव हो पाए। नरेंद्र मोदी बिलकुल ठीक कह रहे हैं। रामविलास पासवान की शख्सियत सिर्फ दलित और पिछड़ों तक ही सिमित नहीं थी। वो सभी वर्गों में उतने ही लोकप्रिय थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों के लिए बराबर काम किया। बिहार के एक गरीब परिवार से निकल के भारत की सत्ता के गलियारों में अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं है। और इसके बावजूद एक सभ्य, शालीन और मिलनसार स्वभाव रखना किसी की भी यकीन से परे है।

और शायद इसलिए उनके जगह को अपनाना किसी के लिए भी एक चुनौती से काम नहीं होगा। चाहे वो उनके बेटे चिराग पासवान ही क्यों न हो। लेकिन, सबकी निगाहें चिराग पर ज़रूर होंगी। सब चाहेंगे कि चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की जगह ले सकें। सवाल है कि क्या चिराग ऐसा कर पाएंगे।

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग हो कर अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला लेकर चिराग पासवान ने ये तो साबित कर दिया है कि उनमे बड़े फैसले लेने की काबिलियत है। अब अगर वो अपने चुनावी समीकरणों को परिणामों में बदलने में कामयाब हो गए तो ये बात भी तय हो जाएगी कि रामविलास पासवान की विरासत सुरक्षित हाथों में है।

जिस तरह रामविलास पासवान गरीब गुरबों की आवाज़ बन के उभरे थे, चिराग पासवान के समीकरणों के बीच भी वही गरीब गुरबे दिखते हैं। बात सीधी सी है। चाहे वो नितीश कुमार हों या लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप, या खुद चिराग पासवान, इन सब की नज़र बिहार के पिछड़े, अति पिछड़े और आदिवासी वोट बैंक पर है। अगर चिराग ऍनडीये में भारतीय जनता पार्टी और नितीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के साथ चुनाव लड़ते हैं तो वो रोटी के एक छोटे से टुकड़े के लिए ही लड़ रहे होंगे। जबकि अगर वो अकेले चुनाव लड़ते हैं तो वो पूरी रोटी पर अपनी दावेदारी पेश करते हैं।

चिराग पासवान युवा हैं, उनकी भूख बड़ी है, और कहीं न कहीं अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराने की चाहत उससे भी ज्यादा बड़ी है।

और अब रामविलास पासवान के जाने के बाद चिराग पासवान की भूख मज़बूरी में बदल गयी है। अगर चिराग चाहते हैं कि वो अपने पिता रामविलास पासवान की जगह ले सकें तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ जुड़ना पड़ेगा, उनकी आवाज़ बननी पड़ेगी और उनका प्रतिनिधित्व करना पड़ेगा। क्यूंकि, कोई ऐसे ही रामविलास पासवान नहीं बन जाता।

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