
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरफ जहाँ कांग्रेस सरकार राज्य में कोरोना महामारी से निपटने में लगी थी, वहीं बीजेपी कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने में लगी थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि बीजेपी ने कांग्रेस के विधायकों को खरीदने के लिए 25-25 करोड़ रुपये तक की पेशकश की।
कहने को तो अशोक गहलोत यहाँ बीजेपी को एक अनैतिक पार्टी का दर्ज़ा दे रहे हैं। और भला दे भी क्यों न? पिछले साल की अगर बात करें तो कर्नाटक और इस साल की बात करें तो मध्य प्रदेश में बीजेपी कांग्रेस से सत्ता छीन चुकी है। और गहलोत इसी बात की दुहाई दे रहे हैं।
लेकिन बात की गहराई में अगर जाया जाये तो ये पता चलता है कि बात चाहे कर्नाटक की हो या मध्य प्रदेश की, कमी दोनों जगह कांग्रेस में ही थी। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के खुद के विधायक अपनी सरकार और कांग्रेस के आला कमान से खुश नहीं थे। बीजेपी ने महज़ मौके की नज़ाकत को समझा और दोस्ती का हाथ आगे कर दिया।
और अगर राजस्थान सरकार की मौजूदा परिस्थिति को देखा जाये तो अशोक गहलोत की परेशानी साफ़ समझ में आती है। चाहे सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग हो या मायावती के विधायकों से समर्थन लेने की बात हो, राजस्थान में कांग्रेस शुरू से ही दो खेमों में बटी दिखती है। और फिर जिस तरह से कांग्रेस सरकार ने राजस्थान में कोरोना की जंग लड़ी है, इसने अपने विधायकों की नाराज़गी और भी बढ़ा दी है। विधायक नहीं चाहते थे कि राज्य सरकार को उत्तर प्रदेश के मज़दूरों के पलायन वाले मामले में मोहरे कि तरह उपयोग किया जाये। और ऐसे कई उदाहरण है बताते के लिए।
तो अशोक गहलोत जानते हैं कि उनकी सरकार भी हाशिये पे ही है और कभी भी बगावत हो सकती है। खासकर जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया वाला मामला सामने आया है, विधायकों का भरोसा कांग्रेस के आला कमान पे और भी काम हुआ है। तो ऐसे में अशोक गहलोत जानते हैं कि क्या कहना है और कितना कहना है।
भले ही गहलोत बीजेपी पर निशाना साध रहे हों, उनका इशारा सीधा कांग्रेस आला कमान के लिए है। वो ये कह रहे हैं कि वैसे तो वो अपने तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं विधायकों को साथ में रखने के लिए, अगर कल कुछ हो जाये तो उन्हें जिम्मेदार न माना जाये। और दूसरी बात कि आला कमान भी अपनी जिम्मेदारी समझे और समय रहते समस्याओं का समाधान करे।
ज़ाहिर सी बात है कि अमित शाह ने तो इशारा अब तक समझ ही लिया होगा। लेकिन क्या सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी इस इशारे को समझ पाएंगे, क्या वो समय रहते अपने खेमे पे फूट पड़ने से रोक पाएंगे।
जिस तरह पिछले एक साल से कांग्रेस आला कमान का बर्ताव रहा है, इस बात कि उम्मीद न के बराबर है कि अशोक गहलोत के इशारे को कांग्रेस समझ पायेगी। और शायद इसलिए अशोक गहलोत की छटपटाहट साफ़ नज़र आ रही है।